मलाई

                                  मलाई 

                                                                                                                                                                                          अनन्त गौड़


इस बात का ज़िक्र दरअसल मैंने आज से पहले कभी नही किया, अपने सबसे क़रीबी दोस्तों से भी नही। सच तो यह है कि एक अरसे से खुद से भी नहीं। और ना जाने क्यों पर मुझे शुमार है कि जब यह कहानी उन तक पहुंचेगी तब बहुत से चप्पल जूतों की एक श्रृंखला मेरा स्वागत करती नज़र आएगी। यह उन दिनों की बात है जब मैं कॉलेज के दूसरे साल में था और हर ताज़ा तरीन वयस्क नर कि तरह एक साथी की तलाश में इधर से उधर अर्ज़ियां लगा रहा था। जिस तरह हर कॉलेज में कुछ ही ऐसी खूबसूरत नवयुवतियां होती हैं जिनके किस्से, कहानियां, बातें और बेवकूफियां हर कोई जानने में रूचि रखता है, उस ही तरह हमारे यहाँ भी ऐसी चंद ही लड़कियां थीं और उन में से ही सबसे रोचक थी मलाई, जो सभी नौजवान युवकों के आकर्षण का केंद्र बिंदु थी. उसे इस नाम से बुलाने के पीछे एक बहुत ही सीधी सी वजह यह है कि जब पहली बार मैंने और मेरे सबसे घनिष्ठ मित्र ने उसे देखा, तब उसके मुँह से जो शब्द निकले वो यह थे, "अबे, ये तो मलाई है यार"। दरअसल उस वक़्त हम दोनों नुक्कड़ की दुकान पर बैठे चाय पी रहे थे, जब मैंने देखा कि छरेरे बदन वाली एक देवी हमारी तरफ बढ़ी चली आ रही थी, जिसकी काया बिलकुल दूध के मानिंद सुफ़ेद थी। इतनी नाज़ुक कि जहां ऊँगली रख दो तो मानो ख़ून उतर आता। लम्बे बाल, कटीले नैन नक्श और ख़ूबसूरत जिस्म वाली मलाई की सबसे मज़ेदार बात थी उसका चुलबुलापन जो लोगों को उसका और भी ज़्यादा दीवाना बनाता था। मलाई वैसी लड़की थी जिसे ज़्यादातर लड़के जीवनसाथी बनाना चाहें, घर ले जाकर माँ बाप से मिलाना चाहें, इश्क़ करना चाहें। मैं उन लड़कों में से नहीं था।

ऐसा भी नहीं था कि उसकी अदाओं का मुझपर कोई असर नहीं होता था पर हर लड़के कि ज़िन्दगी में एक दो ऐसी लड़कियां होती हैं जिन्हें वो सिर्फ एक ही तरह कि नज़र से देखते हैं।मैं मलाई को उस ही तरह कि नज़र से देखता था।सेक्स की नज़र से।और यह नज़र सब देखती थी। उसकी लम्बी ज़ुल्फ़ें, छोटे छोटे नाज़ुक हाथ, उसकी लड़खड़ाती मटकती चाल, उसके फिलहाल अधूरे विकसित स्तन, गुलाब से सुर्ख़ लाल होंठ और उनसे बहती हुयी खिलखिलाती बेफिक्र मुस्कुराहटें। सिर्फ उसके नाम और चुलबुले सामाजिक व्यव्हार के सिवा मैं मलाई के बारे में और कुछ नहीं जानता था, और जहां तक मेरा अंदाज़ा है सिर्फ इतनी ही जानकारी मलाई को भी मेरे बारे में थी। एक दूसरे के लिए हम, मेरे कॉलेज में पढ़ने वाले एक लड़का लड़की थे। हमारी इकलौती बातचीत वो थी जब पहले साल कैन्टीन में उसकी नाज़ुक एड़ी से मुझे ठोकर लग गयी थी और उसने पलटकर मुझे "ओह.... आई ऍम रियली सॉरी" कहा था। उफ़्फ़ वो नफ़रत भरी निगाहें जिनसे वहां बैठे सब मुश्टंडो ने मुझे देखा था, और उन में से ज़्यादातर मेरे ही मित्र थे। कमीने।

कॉलेज के खबरियों ने पक्की ख़बर फैलायी हुई थी कि उसका एक बॉयफ्रैंड है जो अभी विदेश में पढ़ रहा है। शायद यह भी एक वजह थी कि मैं बाकियों कि तरह हाथ पैर और चेहरा धो कर मलाई के पीछे नही पड़ा हुआ था, क्योंकि शायद मुझे भी पता था कि मेरा कोई चांस नहीं।

हमारी कॉलेज बिल्डिंग का तीसरा और चौथा माला ज़्यादातर खाली ही होता था, इसलिए मेरा अक्सर वहां आना जाना लगा ही रहता था। बड़ा सुकून मिलता था वहां। मैं घंटों वहां बैठा रहता, उप्पर से लोगो को देखता, और उनके बारे में उल-जलूल किस्से कहानियां मन में बुना करता। तो जैसा मैं शुरुआत में कह रहा था की यह कॉलेज का दूसरा साल था जब एक दिन मैं अपनी तनहा सैर पर था, चौथे माले से नीचे आते वक़्त मैंने देखा कि बाथरूम से सटी हुई सीढ़ियों पर एक लड़की बैठी हुई थी।मलाई। हालांकि उसने हाथों से अपना चहरा ढका हुआ था,पर उसके शरीर को इतने महीनों घूरने के बाद मैं उस घुमावदार बनावट और गोलाई से इतना वाक़िफ़ हो चुका था कि बिना चहरा देखे ही पहचान गया कि वो कौन है। मलाई ग़मगीन थी, यह बात उसकी नम आंखे और धीमी धीमी सुबकियां साफ़ बयान कर रहीं थी। पहले तो मैं चुपचाप वहां से जाने लगा, पर फिर दिल ही दिल में उसके लिए बुरा भी लगा। इतने खूबसूरत चेहरे को रोता देख किसी का भी दिल पसीज जाए, और मेरा मौक़ापरस्त दिमाग़ बार बार मुझसे कह रहा था की " यही सही मौका है"। मैंने वापस जाकर उससे पूछा की " एक्सक्यूज़ मी, तुम ठीक हो ना"। वो अचानक से चौंक गई और अपने आंसु छुपाते हुए कहने लगी " हाँ, आय ऍम फाइन। थैंक्स। यू गो प्लीज़"।

"हम्म्.... देखिये चला तो मैं गया था, पर मन नहीं माना, इसलिए मजबूरन मुझे यहाँ रुकना पड़ेगा आपकी परेशानी दूर करने के लिए" मैंने कहा।

"नो यू कान्ट, सो जस्ट लीव मी अलोन"।

कुछ देर हम वहीं चुपचाप बैठे रहे, फिर मैंने मलाई के कांधे पर हाथ रखा और कहा "कोई बात नही"। मेरा बस इतना कहने कि देर थी की मलाई कस कर मुझसे लिपट कर रोने लगी। मेरे बदन में तो जैसे अजीब गुदगुदी सी कौंधने लगी, उसका सीना मेरे सीने से सटा था, कुछ ऐसा महसूस हो रहा था मानो बिजली के बारीक झटके मुझे मिल रहे हों। मेरे हाथों को तो जैसे अपना खुद का दिमाग़ मिल गया हो, उसके कोमल शरीर पर यहाँ से वहाँ दौड़ने के लिए तड़पने लगे, खुद ही उसके स्तन की तरफ बढ़ते फिर रुक जाते।ऐसा होने से खुद को रोक रहा था इसलिए मैंने भी कस कर मलाई को बाहों में भर लिया और कहा की " रोने से डार्क सर्कल्स हो जाते हैं मैडम, लड़के तो होते ही धोकेबाज़ हैं", यह सुनकर वो और तेज़ रोने लगी। फिर कुछ देर सिलसिला कुछ ऐसा ही चला, मैं कुछ कहता और मलाई का रोना तेज़ होता जाता। आख़िरकार जब मैंने कहा "तुम इतनी प्यारी हो, मैं होता तो कभी ऐसा ना करता"।आज भी मैं उस लम्हे को सोचकर दुआएं देता हूँ जिस वक़्त ये अल्फ़ाज़ मेरे ज़हन में आए थे। अचानक ही मलाई अपना चेहरा मेरे चेहरे के करीब लायी और मुझे चूमना शुरू कर दिया। उसके होंठ इतने नर्म थे मानो रूई से बने बादल, उसकी गीली ज़ुबान, और उसकी मुलायम गोरी कमर पर मेरा हाथ। उफ़्फ़.... वो चेहरे पर आती ज़ुल्फ़ें। खुदको रोक पाने की हद अगर कुछ हो सकती है तो शायद वो वही थी। एक पल को मैंने सोचा की आख़िर मलाई कर क्या रही है, क्या मैं उसे रोक दूं।पर इतनी हिम्मत नहीं हुई और भला ऐसे स्वर्गिय एहसास को रोकने कि मेरी मजाल कहाँ। तक़रीबन 10 मिनट कि इस चुम्बन प्रक्रिया के बाद अचानक मलाई उठी और भाग खड़ी हुई।और मैं मधमस्त कई घंटो वहीँ बैठा रहा, उसका वहीँ बैठे मुझे चूमने के खयालों में खुश होता रहा। उसके जाने की राह पर आँख लगाए सोचता रहा।उस रात सो पाना मेरे लिए कैसा था वो तो सिर्फ मैं जानता हूँ या मेरी जागती रात। अगले दो दिनों तक मलाई बहुत ढूंढने पर भी मुझे कहीं नहीं दिखी।तीसरा दिन  रविवार था। सोमवार को जब मैं लंच के समय कैंटीन में घुसा तो वो अपने दोस्तों के साथ बैठी थी। मैंने उसके पास जाकर पूछा," हे, कैसी हो मैडम। कहाँ गायब हो गई"। उसने मेरी तरफ़ देखा और मुस्कुरा कर प्यार से मुझे 'हाए' बोला और फिर उतने ही प्यार से मेरी अगली 6-7 बातों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया। कुछ देर बाद वो उठकर वहां से जाने लगी, मैं दौड़कर उसके पीछे गया और उसका हाथ पकड़ कर रोकते हुए पूछा "ओए, क्या हुआ??"। उसके बाद जो हुआ वो मैं शायद ही कभी भुला पाऊं। मलाई ने घूमकर तक़रीबन 50 लोगों के बीच मुझे ज़ोरदार थप्पड़ मारा। और मैं कुछ नहीं कर पाया, यह कहकर की "क्यों परेशान कर रहे हो" वो उधर से चली गए। वहां मौजूद सब लोगों कि आँखें मुझे घूरती रही, अगले कई महीनों, कई सालों तक। उस एक लम्हे ने मुझे यह एहसास कराया कि इस दुनिया में प्यार से भी ज़्यादा प्रबल एक चीज़ होती है। नफ़रत।

कॉलेज ख़त्म हुए 8 साल हो चुके थे और उससे पहले ही मुझे  इस बात का पता चल गया था कि डिग्री का फ़ायदा  मुझे तो कभी नहीं मिलने वाला। अब मैं एक लेखक बन चुका था, और 3 प्रचलित किताबें लिखने के बाद जीवन के लगभग सभी रस भोग चुका था। बिसरी बातों को याद कहाँ से करता  जब खुद के लिए भी समय नहीं था। फ़िलहाल ज़िन्दगी नई किताबों के आइडियाज़, फ़ैन मेल्स, पब्लिशर्स के साथ मीटिंग्स और पुरानी किताबों के प्रमोशन में निकल रही थी। देश का लगभग हर हिस्सा मैं घूम चूका था और विदेश के भी 4 चक्कर लग चुके थे। एक दिन कम्प्यूटर के सामने बैठे हुए मैं प्रशंसकों से अपनी नई किताब का स्तुतिगान  कर रहा था कि मेरे इनबॉक्स में एक मैसेज आया। वो मलाई का मैसेज था। एक सिम्प्ल सा 'हे', जिसने पुरानी सारी यादें ताज़ा कर दी। वो सब बातें जो मैं भुला चूका था। कुछ 7 घंटे बाद जब मुझसे रहा नहीं गया और मेरे मन ने कहा कि पुरानी बिसरी बातों में कुछ नहीं रखा तो मैंने मलाई के मैसेज का जवाब दिया। "क्वाइट बिज़ी" उसने कहा। फिर सारी फॉर्मल बातें और एक दूसरे का हालचाल जानकर हमने उस रात अलविदा कहा। अगली सुबह जब मैं उठा तो पहले से ही एक मैसेज मेरा इंतज़ार कर रहा था, जिसमें मलाई ने उस दिन कैंटीन में जो कुछ हुआ  उसकी लम्बी सी माफ़ी मांगी हुई थी। जवाब में मैं सिर्फ इतना ही कह सका की "मैंने तुझे माफ़ कर दिया तो इस वक़्त जितनी हसीन तू लग रही है वो फिर कैसे देख पाउँगा"। जिसका जवाब उसने एक मुस्कुराहट के साथ दिया। मलाई को शायद इस बात का सबब था पर फिर भी मैंने उसे बताना लाज़मी समझा कि वो मेरी किताब की कुछ पंक्तियाँ थी। जैसा मुझे लगा था, उसे ये बात पहले से मालूम थी। उसके बाद कुछ दिन हमने बात नहीं की। फिर अचानक एक शाम उसका मैसेज आया "जस्ट रैड यौर न्यू बुक , इट्स  ऑसम। हैव फॉलेन इन लव विद  द कैरैक्टर्स। वाना मीट अप फॉर कॉफ़ी एंड टैल मी मोर अबाउट देम"।

"ऑफ़कोर्से, व्हेन", मैंने कहा।

अगले दो दिन में हम एक रेस्टुअरैंट में मिले। मलाई जो कि पहले ही खूबसूरत थी अब और भी अधिक आकर्षक हो गई थी, जिसे देख कर आज भी आते जाते पुरुश पलट कर देखने पर मजबूर हो जाएं। फ़र्क सिर्फ़ इतना था की अब वो कोई बढ़ती नवयुवती नहीं रही थी बल्की सुड़ौल शरीर और हर मायने में विक्सित एक महिला बन चुकी थी। बस एक बात आज भी नहीं बदली थी, उसका चुलबुलापन। उस दिन फिर मेरी किताबों और हमारी बातों के बीच उसने उस दिन के लिए माफ़ी मांगी। उसके बाद बातों और मुलाकातों का सिलसिला कुछ ऐसा चला कि हम दोनों लगभग हर रोज़ ही एक दूसरे से बात किया करते और मिलना भी हर एक दो दिन में होता ही रहता। मेरे इतने प्रशंसक और लोगों का मेरी तरफ़ इतना प्यार देख कर वो कई बार अचंम्भित रह जाती थी। शायद यह भी एक वजह थी वो मुझे अपना दिल दे बैठी थी और यह बात उसने मुझे साफ़ साफ़ बता दी थी। फिर वो दिन आया जब मलाई ने मुझे अपने घर बुलाया।

एक अकेली आत्मनिर्भर महिला होने के बाद भी मलाई ने काफ़ी बड़ा और अच्छा घर बनाया था। पर जीवन में वो अकेली हो चुकी थी। शायद इसलिए ही उसको किसी साथी कि तलाश थी। और इसलिए ही शायद उसने एक छोटा कुत्ता भी पाला हुआ था। मुझे कुत्तों से कोई खास लगाव नहीं था। उस दिन जब मैं मलाई के घर में घुसा ही था की उसके कुत्ते ने मुझपर भौंकना शुरू कर दिया। लोग कहते हैं कुत्तों को होने वाली घटनाओं का अंदेशा हो जाता है। मलाई ने उसको एक कोने में बांध तो दिया पर तक़रीबन पौना घंटा लगा उसे पूरी तरह शांत होने में। हम मलाई के बिस्तर पर बैठे कुछ पुरानी तसवीरें देख रहे थे कि मलाई अचानक मेरे क़रीब आई और मुझे चूमना शुरू कर दिया। बिलकुल वैसे ही जैसे तब, कॉलेज कि उन सीढ़ियों पर। सब यादें ताज़ा हो गई। सभी यादें। मैं मलाई के इतना क़रीब था की हवा भी बीच से ना गुज़र सके। मलाई ने एक एक कर अपने सारे कपड़े उतार फ़ेंके थे, शायद अकेलापन ही वजह थी कि उसे एक ऐसा साथी चाहिए था जो उसकी सारी ज़रूरतें पूरी कर सके। वो चाहकर भी खुद को रोक नहीं पा रही थी। एक महिला को सेक्स के लिए इतना पागल मैंने पहले कभी नहीं देखा था। या शायद जैसा लोग कहते हैं कि एक लेखक के साथ हमबिस्तर होना ज़्यादातर औरतों का ख्वाब होता है। उसके सुड़ौल वक्ष और बेहिसाब रौशनी सी चमकदार काया को देख कर किसी भी पुरुश का ईमान डोल जाता, फिर मैं तो कॉलेज से ही इस दिन कि चाहत में था। मैंने मलाई के जिस्म को चूमना शुरू किया और तब तक चूमता रहा जब तक कि मेरे होंठ थक नहीं गए। हम दोनों ही पूरी तरह नग्न थे और जैसा भाषा के एक तबके में कहा जाता है, इस वक़्त तक मलाई पूरी तरह मस्त हो चुकी थी। वो हमारे इस खेल के अगले चरण की आस में थी। मुझे अंदाज़ा था कि इस वक़्त कुछ भी ग़लत कहना या करना मलाई को बुरी तरह घायल कर सकता है। शायद मैं इसी लम्हे के इंतज़ार में था। मैंने उठ कर अपनी पतलून पहनी, और बाकी कपड़े डालने शुरू किए। मलाई ने पूछा "क्या हुआ, व्हाई डिड यू स्टॉप"। उसने ज़ोर से मुझे अपनी तरफ़ खेंचने कि कोशिश की। "व्हाट हैप्पंड" उसने कहा।

" यह जवाब है उस थप्पड़ का जो उस दिन कैंटीन में सबके सामने मारा था।"

यह सुनकर मलाई को जो धक्का लगा वो उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा था।

" आय ऍम सॉरी। आय सेड सॉरी। प्लीज़ डोन्ट डू दिस टू मी। प्लीज़।"

मलाई रोती रही, गिड़गिड़ाती रही। फिर चीखती रही, चिल्लाती रही। सामान इधर से उधर फेंकती रही। पर मैं कहाँ रुकने वाला था। शायद यह सब शुरू से ही कहीं मेरे मन में था। ऐसी जगह चोट देना जहां सबसे गहरा आघात हो। शायद मुझे अब प्यार कि नहीं बदले कि तलाश थी। मैं जब मलाई के कमरे से बाहर आया तब भी मलाई चीखती रही, गालियां देती रही। उसके कुत्ते ने फिर मुझपर भौंकना शुरू कर दिया। जब मैं बाहर आ रहा था तब मलाई मेरे पीछे तक आई तो थी पर बिना कपड़ों के होने कि वजह से दरवाज़े से बाहर नहीं निकल पाई। लेकिन उसकी पुकारें, उसकी चीखें ज़रूर मेरे पीछे तक आ गई। उसका कुत्ता उसका साथ तेज़ आवाज़ में रोता रहा। मैं उसके घर के बाहर कुछ दूर तक आया, यह सोचता हुआ कि सैक्स से पागल एक खूबसूरत अकेली महिला अब क्या करेगी। फिर एक नटखट से खयाल से मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उन दोनों कि आवाज़ें धीरे धीरे कम होती गई और मेरे कदम तेज़। उस दिन दूसरी बार मुझे एहसास हुआ कि इस दुनिया में प्यार से भी ज़्यादा प्रबल एक चीज़ है। नफ़रत।

अनन्त

01/10/2014, 08:30 pm

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