Mr. Justice

मिस्टर जस्टिस
                                            


[ एक डॉक्टर का क्लिनिक ]

( डॉ चौधरी एक महिला पेशेंट से )

हम्म आप ये टेस्ट्स कराईए, फिर उसके बाद ही थेरेपी स्टार्ट करेंगे। ठीक है।

[ महिला जाती है ]

( डॉक्टर गहरी सांस छोड़ते हुए सीधा पाठक से )

बहुत ही दर्दनाक केस था इनका। एक महिला जिसे मेरे पास कुछ साल भर पहले आना चाहिए था। अगर वो तब आ जाती तो शायद उसे आसानी से बचाया जा सकता था, पर अब... इट्स टू लेट। चिढ़ होती है मुझे ऐसे लोगों से, पागल सा हो जाता हूं। सच तो ये है कि इंसान दरसअल एक बहुत ही ग़ज़ब मिश्रण है, बहादुरी और कायरता का। वो भी दोनों एक ही समय पर। एक औरत, जानलेवा दर्द से गुज़रती रही, तकलीफ़ को सहती रही, बग़ैर एक लफ्ज़ भी कहे। सिर्फ़ इस डर से की जिस बात से घबरा रही है, कहीं वो सच ना निकले। और दूसरी तरफ़ वो लोग भी हैं जो ज़रा ज़रा सी बात पर परेशान करते रहते हैं। मेरी उंगली सूज गई है कहीं कैंसर ना निकले, मेरी कमर में दर्द है कहीं स्लिप डिस्क तो नहीं। तंग कर देते हैं ऐसे लोग डॉक्टर को।

[एक दूसरा पेशेंट अंदर आता है ]

( डॉक्टर रेगुलर चैकअप जारी रखते हुए ) 

पर हमारे भी तो अपने तरीक़े होते हैं, ऐसे लोगों से डील करने के... और वो भी मेरे जैसा डॉक्टर, हू ग्रैजुएटेड फ़र्स्ट इन हीस क्लास। बैस्ट एट कैमिस्ट्री। बट पीपल डोंट गेट इट। डोंट रेस्पैक्ट... एंड दे डोंट रेस्पैक्ट लाइफ़।

समटाईम्स वी हैव टू डिसाइड, व्हाट्स राईट। आई मीन... इट्स फॉर द बैटरमेंट ऑफ द वर्ल्ड ओनली। मेंटेनिंग द बैलैंस। जैसा मैंने कहा सबके अपने तरीके हैं। मेरे भी हैं।
एक तो लोग आंखें मूंद कर डॉक्टर पर विश्वास करते हैं।  फ़ीस, दवाई, टेस्ट्स, चैकअप... नो क्वेश्चनस् एट ऑल। सिर्फ़... ठीक है डॉक्टर साहब।

एक पेशेंट और थे मेरे 80 साल के करीब उम्र रही होगी। सर्जरी करनी पड़ती, गरीब लोग थे... घर बार बेचने को तैयार थे। अब अस्सी साल.... पता है राएसीन जैसे कितने ही ऐसे ज़हर हैं जो टेस्ट्स में डिटेक्ट भी नहीं होते। बस डोज़ के साथ दे दो और.... सिम्पल। भई डॉक्टर भगवान का रूप होता है। आप ही लोग कहते हैं और भगवान को सबके बारे में सोचना पड़ता है। सड़क पर आ जाते बेचारे। हाहाहा.. हां एक और केस था। ऐक्सिडेंट। काफ़ी गहरी इंजरी थी। फ़ैमिली भी अमीर थी और बच भी सकता था ईज़ीली पर सारी उम्र डिपेंडेंट होकर जीता... क्या फ़ायदा। तो सर्जरी के दौरान ही... ज़िप ज़िप ज़िप। अब ऐसी ज़िन्दगी से तो बेहतर मौत ही है! तो मौत।
अब अगर गौर से देखा जाए तो हर 2 सेकेंड में जन्म होता है एक बच्चे का और ईको सिस्टम में रिसोर्सेस और ये फॉसिल्स वगहरा वैसे ही डिप्लीट हो रहे हैं। तो ये भी तो जरूरी है कि लोग भी उसी रेट से डिप्लीट हों। जो की हो नहीं रहे। कंज़र्वेशन एंड सर्वाइवल के लिए ये ग्लोबल वार्मिंग कंट्रोल करने से भी ज़्यादा इम्पॉर्टेंट है। ये तो जगत भलाई का काम हुआ। एंड माइंड यू, ऐसा करने वाला सिर्फ़ मैं अकेला नहीं हूं।

नाओ आई विल लीव यू, इफ यू हैव एनी प्रॉब्लम... तो आइएगा चैकअप के लिए। फ़िलहाल मुझे जगत भलाई का थोड़ा काम करना है।

( डॉक्टर पेशेंट की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हैं )

और हां... किसी से कहना नहीं।

[ पेशेंट चीखता है ]


 

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